आयुर्वेद के अनुसार, जब शरीर में पित्त बढ़ जाता है, तो वह निचले अंगों यानी पैरों में जलन पैदा करता

नई दिल्ली  आयुर्वेद के अनुसार, जब शरीर में पित्त बढ़ जाता है, तो वह निचले अंगों यानी पैरों में जलन पैदा करता है। अक्सर रात के समय कई लोगों को पैरों के तलवों में जलन महसूस होती है। कुछ लोग इसे सिर्फ थकान या गर्म मौसम का असर समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। यह शरीर में पित्त दोष बढ़ने का संकेत है।
आधुनिक दृष्टि से देखें तो डायबिटीज के कारण नसों की कमजोरी, विटामिन बी12 या आयरन की कमी, लंबे समय तक खड़े रहना, गलत जूते पहनना या मानसिक तनाव जैसी वजहें भी पैरों की जलन का कारण बनती हैं। इसके लक्षणों में तलवों में चुभन, जलन, रात में गर्मी बढ़ना, पैर भारी लगना या सुन्न पड़ना शामिल हैं। आयुर्वेद में इसका मुख्य कारण पित्त दोष है, जबकि सहायक वात दोष को बताया गया है। इसलिए इलाज में ठंडक देने वाले, शांत करने वाले और वात-पित्त संतुलित करने वाले उपाय सबसे उपयोगी माने जाते हैं। घरेलू उपायों में सबसे सरल तरीका है कि रात को ठंडे पानी या गुलाब जल में पैर 10 मिनट तक डुबोएं। उसके बाद एलोवेरा जेल, घी या नारियल तेल से तलवों की हल्की मालिश करें। नीम या खस के पानी से पैर धोना, पुदीना या तुलसी का शरबत पीना और हफ्ते में दो बार त्रिफला पानी से पैरों को धोना भी बहुत असरदार है। कुछ खास आयुर्वेदिक नुस्खे भी मददगार हैं, जैसे घृतकुमारी (एलोवेरा) जेल में थोड़ा कपूर मिलाकर रात को तलवों पर लगाएं, यह ठंडक और राहत देता है। अंदरूनी गर्मी कम करने के लिए शतावरी चूर्ण या गिलोय रस सुबह खाली पेट लिया जा सकता है।
शरीर में विटामिन बी12, आयरन और कैल्शियम का संतुलन बनाए रखें। सारिवाद्यासव, अविपत्तिकर चूर्ण और गंधक रसायन जैसी औषधियां वैद्य की सलाह से ली जा सकती हैं। नारियल पानी और ठंडे फल जैसे सेब, तरबूज, बेल और लौकी पित्त को शांत करते हैं। हालांकि जीवनशैली में भी कुछ बदलाव जरूरी है। रबर या सिंथेटिक जूते की बजाय कॉटन सैंडल पहनें, योग में शीतली प्राणायाम करें और ध्यान लगाकर मन को शांत रखें।

source – ems

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