डीजे और लाउडस्पीकर की तेज आवाज हानिकारक

डीजे और लाउडस्पीकर की तेज आवाज, खासकर धार्मिक यात्राओं में, भक्ति के माहौल को खराब कर सकती है और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक हो सकती है। यह बच्चों, बुजुर्गों, हृदय रोगियों और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष रूप से खतरनाक है। 90 डेसिबल से अधिक और लंबे समय तक तेज आवाज सुनने से स्थायी रूप से बहरापन (नॉइज़ इंड्यूस्ड हियरिंग लॉस -एनआईएचएल) हो सकता है। यह कान की संवेदनशील कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। तेज आवाज से धमनियां सिकुड़ सकती हैं, जिससे अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है, खासकर हृदय रोगियों में। तेज आवाज से चिड़चिड़ापन, गुस्सा और असहजता महसूस हो सकती है। इससे नींद न आने की समस्या (स्लीप डिसऑर्डर) और तनाव संबंधी हार्मोन भी बढ़ सकते हैं। धार्मिक यात्राओं में डीजे की तेज आवाज से कांवड़ियों और आसपास के लोगों का ध्यान भटक सकता है, जिससे सड़क दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है। तेज आवाज का नकारात्मक प्रभाव गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों पर अधिक गंभीर हो सकता है। डॉक्टरों का मानना है कि भक्ति शांतिपूर्ण तरीके से भी की जा सकती है। तेज आवाज के बजाय, संयमित ध्वनि में भक्ति संगीत या मंत्रों का जाप करना स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।
चिकित्सकों का कहना है, कि मानकों के अनुसार इंसान अधिकतम 90 डेसिबल की आवाज को आठ घंटे सुन सकता है। अगर यह आवाज इससे ज्यादा समय तक सुनी जाती है या इससे ज्यादा डेसिबल की आवाज लगातार सुनी जाती है,तब एनआईएचएल (नॉइज इंडक्टेड हियरिंग लॉस) हो सकता है। इससे संवेदनशील कोशिकाओं को नुकसान होता है। अगर लंबे समय तक ज्यादा ध्वनि के संगीत वाली जगह पर रहा जाए तो स्थायी बहरापन हो सकता है। इसके अलावा तेज ध्वनि की वजह से इंसानी शरीर की धमनियां सिकुड़ने लगती हैं और इसके कारण ब्लड प्रेशर अचानक बढ़ जाता है। लोगों को पता भी नहीं चलता कि उनका ब्लड प्रेशर क्यों बढ़ा है। इसी वजह से दिल संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। उनका कहना है कि इसके अलावा कई ऐसी परेशानियां शरीर में होने लगती हैं जो नॉन ऑडिटेबल यानी जिनका कारण स्पष्ट नहीं हो पाता। तेज ध्वनि की वजह से असहजता, चिड़चिड़ापन, गुस्सा आने जैसे बदलाव आ सकते हैं।




